सोमवार, 12 अगस्त 2013

अनेक अबूझे प्रश्न

  अनेक अबूझे प्रश्न

एकाँत मेँ मैँ मुझसे ही जूझता हूँ,
अनेक अबूझे प्रश्न स्वयँ से पूछता हूँ.
नीरवता मेँ मुझे प्रत्यक्ष साधारण -
एवँ अप्रत्यक्ष रोमाँचक लगते हैं,
विग्यान के कतिपय सर्वमान्य तथ्य
दर्शन की कल्पनाओँ सम भ्रामक लगते हैं.

सापेक्षता का सिद्धाँत कि प्रकाश-वेग
प्रकाश के स्रोत एवँ उसके निरीक्षक
की गति से निरपेक्ष होता है
एवँ बृह्माँड का कोई कण अथवा किरण
उससे अधिक वेग प्राप्त कर नहीँ सकता है,
प्रकाश-वेग को इस संसार एवम किसी अन्य संसार
के बीच की एक ऐसी अभेद्य सीमा बनाता है,  
जो बुद्धि से परे है - जिसका अभौतिक से नाता है.

अनादि-काल से विस्मृत अनँत-गुरुत्व के पिँड से
बृह्माँड की उत्पत्ति का विचार अनोखा लगता है,
अनादि-काल एवँ अनँत-गुरुत्व का अस्तित्व
इक धोखा लगता है.
उस अभेद्य महाशून्य मे तरँग से विस्फोट का हो जाना
महासागर मेँ एक कण से चक्रवात लाने जैसा लगता है.

शरीर का अणु-अणु निर्मित है परमाणु से
और परमाणु, बना है इलेक्ट्रौन-प्रोटौन से
या गौड-पार्टिकिल नामक हिग्स-बोसौन से.
इनमेँ एक मेँ भी जीवन के आसार नहीँ हैँ
गति तो है, पर सम्वेदना या प्यार नहीँ है.
निष्प्राण कणोँ से प्राणवान जीव के
निर्मित हो जाने का रहस्य मुझे प्रायः झकझोरता है
“क्या कहीँ कुछ भी निर्जीव है ?”
मेरा मैँ यह प्रश्न टटोलता है.

एकाँत मेँ मैँ मुझसे ही जूझता हूँ,
अनेक अबूझे प्रश्न स्वयँ से पूछता हूँ.
सीमा मेँ बँधी मेरी बुद्धि
प्रायः मुझे असीम की ओर ले जाती है
चिर-विस्तारमान बृह्माँड मेँ
स्वयँ की अस्मिता जानने को उकसाती है.
(टिप्पणी- 1. प्रकाश-वेग 3,00,000,000 मीटर प्रति सेकंड है-
किसी वस्तु का इससे द्रुतगति से न चल सकना अजूबा तथ्य है.
2. बिग-बैंग सिद्धांत के अनुसार अनंत काल से पड़े अनंत-गुरुत्व के
पिंड मे अनजानी-तरंग से विस्फोट होने से संसार का आरम्भ हुआ.
3. शरीर का प्रत्येक कण स्वयँ मेँ निर्जीव है, परंतु विशेष प्रकार
से मिलकर यही निर्जीव कण जीवित शरीर की संरचना करते हैं.

महेश चंद्र द्विवेदी

















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